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कैसे दिल्ली के स्कूलों ने मुझे एडमिशन नहीं दिया क्यूंकि मैं और बच्चों से कुछ अलग थी

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विनयना खुराना:

Translated from Englist to Hindi by Sidharth Bhatt.

दिल्ली में पटपरगंज के एक स्कूल के प्रिंसिपल के दफ्तर के बाहर, मेरी व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे मुझे काफी समय हो गया था। बाहर इंतज़ार करते हुए मैं और मेरे माता-पिता यही बातें कर रहे थे कि हम मेरे एडमिशन के लिए उन्हें कैसे मनाएंगे। हम काफी परेशान थे क्यूंकि अभी तक हमने जिस भी स्कूल में बात की थी, सभी नें कुछ ना कुछ बहाना बनाकर एडमिशन के लिए मना कर दिया था। आखिरकार प्रिंसिपल ने हमें बुलाया और कहा, “हम एडमिशन नहीं दे सकते क्यूंकि सातवीं क्लास दूसरी मंजिल पर है, और आपके बच्चे के लिए हमारे पास उचित सुविधाएं मौजूद नहीं है।“

झूठ सरासर झूठ!

मुझे सेरिब्रल पाल्सी है। यह दिमाग के एक विशेष (सेरिब्रल) हिस्से को नुकसान पहुँचने की वजह से होता है, और यह मुझे कुछ चीजें करने से रोकता है। मुझे बोलने में मामूली तकलीफ होती है, मुझे चलने और कुछ अन्य शारीरिक हरकतें करने में तकलीफ होती है। लेकिन इनके अलावा मुझे और कोई अन्य परेशानी नहीं है। मेरे सोचने और समझने का तरीका भी बिलकुल वैसा ही है जैसा कि मेरी उम्र के किसी और का होता है, लेकिन कुछ लोगों को यह बात समझ में नहीं आती। दिल्ली के स्कूल मुझे एडमिशन नहीं देते क्यूंकि मैं एग्जाम में लिख नहीं पाती और ना ही खेलों में हिस्सा ले पाती हूँ। और जो चीजें मुझे अच्छी लगती हैं और मैं कर सकती हूँ, उनमे उन्हें कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं है।

सफदरजंग एन्क्लेव में स्थित मेरे स्कूल जाने के लिए मुझे रोज 20 किलोमीटर का सफ़र तय करना पड़ता था इसी वजह से मैं और मेरे माता-पिता मेरे लिए घर के पास कोई स्कूल तलाश रहे थे। मेरी बिगड़ती तबियत के कारण मेरे लिए रोज इतना लम्बा सफ़र करना आसान नहीं था, इस वजह से मेरे लिए तुरंत किसी पास के स्कूल में एडमिशन लेना जरुरी था, लेकिन इस वजह से कई और परेशानियां खड़ी हो गई थी।

हर स्कूल के पास मुझे पढ़ाने से इनकार करने का कोई ना कोई तरीका होता था। वसुंधरा एन्क्लेव के एक मशहूर स्कूल ने मेरी लिखित परीक्षा भी ली, लेकिन उन्होंने मुझे बताया कि मैं इसमें पास नहीं हो सकी। झूठ सरासर झूठ!

मेरे स्कूल सेंट मैरी में मुझे हमेशा औसत से ज्यादा ही अंक आते थे। इसलिए यह नतीजा मेरे लिए और मेरे माता-पिता के लिए काफी चौंकाने वाला था। अगला स्कूल सी.बी.एस.ई. से मान्यताप्राप्त स्कूल था जो कि मेरे घर के बेहद पास भी था। वहां के प्रिन्सिपल ने मेरी शारीरिक अक्षमता के कारण मुझे सीधे-सीधे एडमिशन देने से मन कर दिया और मुझे स्कूल में दाखिले के लिए एग्जाम भी नहीं देने दिया।

अंत में ये तय हुआ कि घर से काफी दूर होने के बावजूद मैं, मेरी पढाई सेंट मैरी स्कूल में ही जारी रखूंगी।

कोई भी परफेक्ट नही होता

सेंट मैरी स्कूल में मेरा अनुभव बिलकुल अलग था। वहां के मेरे सफ़र में मैंने कई सारी चीजें सीखी और मैंने कई उपलब्धियां भी हासिल की। वहां मैंने मेरे उम्र के बच्चों से बातें की, मैंने उनसे और उन्होंने भी मुझे कई सारी चीजें सीखी। मुझे पूरा यकीन है कि, किसी विशेष स्कूल में मैं उस तरह से मेरी क्षमताओं को नहीं समझ पाती जिस तरह से मैंने सेंट मैरी में उन्हें समझा। और असल में जो सबसे जरुरी सबक मैंने वहां सीखा वो ये था कि कोई भी परफेक्ट नहीं होता।

मैं इस नतीजे पर पहुंची कि अगर मुझ में कुछ शारीरिक कमियां हैं तो हर किसी इन्सान में भी कुछ ना कुछ कमियां, कमजोरियां होती ही हैं। इन्हें शायद हम अपनी आँखों से ना देख पाएं लेकिन हम उन्हें लेकर एक दूसरे की मदद जरुर कर सकते हैं। स्कूल में मैं मेरे साथ के बच्चों की बातें बेहद गौर से सुनती, और वो मुझसे अपनी भावनाओं, दुःख तकलीफ और हर तरह के रिश्तों को लेकर बात करते, इसके बाद उन्हें लगता की उनकी आधी परेशानी जैसे ख़त्म हो गयी हो। नतीज़तन सेंट मैरी में मैंने ऐसे दोस्त बनाए, जिनकी दोस्ती मेरे साथ हमेशा कायम रहेगी।

मेरा पहला दिन

मैं दूसरी क्लास में थी जब मैंने पहली बार सेंट मैरी में कदम रखा। मैंने नीले रंग की फ्रॉक पहन रखी थी और जैसे ही मैं क्लास में दाखिल हुई, मुझे देखकर हर बच्चा काफी खुश नजर आ रहा था। कुछ बच्चे मेरे लिए फूल लेकर आए थे और कुछ मेरे लिए अपने हाथों से कार्ड बनाकर लेकर आए थे। उस वक़्त तक मेरी क्लास के बच्चों को नहीं पता था कि सेरिब्रल पाल्सी क्या है। वो जानते थे कि मैं थोड़ा अलग हूँ, लेकिन फिर भी उनमें से ही एक हूँ।

मैं जैसे-जैसे बड़ी हुई, मेरे दोस्त मेरी सीमितताओं को समझने लगे लेकिन, मेरी क्षमताओं की कोई सीमा नहीं है वो ये भी समझते थे। मुझे जब भी जरुरत होती तो वो मेरी सहायता करते। जैसे मेरे सभी साथी जानते थे कि मुझे पानी पीने में कैसे मदद की जाए। कुछ ऐसा करने के दौरान कभी मुझ पर भी पानी गिरा देते, तो कुछ इसे बिल्कुल अच्छे से करते। मेरे वो दोस्त जो इसमें अच्छे थे वो इसे ठीक से ना करने वालों को कभी-कभी झिड़क भी देते (जिसे लेकर मुझे बुरा लगता था)।

with principal of st. mary's school.
मेरी प्रिंसिपल के साथ सेंट मैरी स्कूल में

मेरे टीचर भी मुझे समझने के लिए ख़ास कोशिशें करते, इसके लिए उन्होंने एक ख़ास कम्युनिकेशन बोर्ड बनाया (जिस पर रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले शब्द और अंग्रेजी के अक्षर लिखे हुए थे)। मुझे याद है जब मैं चौथी क्लास में थी तो मैंने मेरी ड्राइंग बुक में पहली बार हाथी का चित्र बनाया था। इस चित्र की काफी तारीफें की गयी, और इसके बाद जब भी मेरे टीचर्स ने मुझे हाथी बनाने को कहा मैंने हमेशा पहले से बड़ा हाथी बनाया। मेरी प्रिंसिपल एनी कोशी मैडम मुझे बेहद प्यार करती थी और मुझे मुस्कुराते हुए देखना उन्हें बेहद पसंद था। मुझे याद है जब मैंने पहली बार बिना किसी की मदद से चलना शुरू किया तो मुझे एक बड़ा चॉकलेट केक मिला था।

ख़ास या सबके साथ

कुछ लोगों को सभी बच्चों के एक साथ पढने का विचार ठीक नहीं लगता। मैंने कुछ ऐसे माता-पिता से बात की है जो सोचते हैं कि अक्षमता से झूज रहे बच्चों के लिए अलग स्कूल होने चाहिए। जब मैंने उनसे इसका कारण जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि अगर कोई “विशेष” बच्चा क्लास में हो तो टीचर अन्य बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते। मेरे अनुभव में तो 42 बच्चों की मेरी क्लास में सब कुछ “सामान्य” ही था, और मैं अन्य सभी बच्चों की तरह अपनी पढाई में आगे बढ़ रही थी। मेरे स्कूल में आमतौर पर “विशेष” कहे जाने वाले बच्चों में से एक होने के बाद भी मैं मेरी क्षमताओं को उन नए स्तर पर ले जा सकी जिनका मुझे भी अंदाजा नहीं था। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि यह शब्द “विशेष” केवल छोटी कक्षाओं में ही प्रयोग किया जाता था ताकि अन्य बच्चों में संवेदनशीलता लाई जा सके। लेकिन हम जैसे-जैसे बड़ी कक्षाओं में बढ़ते गए, हम सभी और करीब होते गए और ये शब्द कहीं पीछे छूट गया।

जहाँ तक मेरी बात है, मैंने विशेष स्कूल और सभी को साथ में पढ़ाने वाले स्कूल, दोनों का ही अनुभव किया है, और मुझे इनकी अच्छी और बुरी दोनों ही बातें मालूम हैं। विशेष स्कूल आपको शारीरिक रूप से विकसित करने में मदद करता है, लेकिन सभी को साथ में पढ़ाने वाला स्कूल आपको शारीरिक, मानसिक, और मनोवैज्ञानिक रूप से भी विकसित करने में सहायक होता है।

मैंने हमेशा से ही सभी के साथ में पढने का समर्थन किया है, क्यूंकि इसकी वजह से मुझे जिंदगी के बड़े नजरिए को समझने का मौका मिला। बेशक विशेष स्कूलों में बच्चों को मिलने वाला प्यार और देखभाल काबिले तारीफ़ है, लेकिन ये शर्म की बात है कि अक्षमता से लड़ रहे बच्चों को उनकी उम्र के बच्चों के साथ पढ़ने का मौका नहीं दिया जाता है। उन्हें हमेशा ही मुख्यधारा के स्कूलों से अलग रखा जाता है, उनकी पढाई को एक बोझ या फिर समाजसेवा के रूप में देखा जाता है, लेकिन उनकी पढाई को उनकी जरूरत के रूप में नहीं देखा जाता। इस भेदभाव का समाज पर गहरा असर होता है, क्यूंकि स्कूली शिक्षा किसी भी बच्चे के जीवन में विकास का बेहद अहम चरण है। अगर आप चाहते हैं कि बच्चे बराबरी, सद्भाव और दोस्ती के सही मायनों को सभी सीमाओं से हटकर समझें, तो सभी बच्चों को साथ में पढ़ने जैसे प्रयोगों को बढ़ावा देना इसका सबसे अच्छा तरीका है।

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